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Tuesday, April 27, 2010

3जी की नीलामी

सरकार को 3जीबीडब्ल्यूए (थर्ड जनरेशनब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस) की नीलामी से 45,000-50,000 करोड़ रुपये का राजस्व मिल सकता है जबकि बजट में इसके जरिए 35,000 करोड़ रुपये मिलने की बात कही गई थी।

3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के 14वें दिन तक लगी बोली 33,500 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है जबकि बीडब्ल्यूए की नीलामी 3जी की बोली की समाप्ति के दो दिन बाद शुरू होगी। दूरसंचार सेवा प्रदाताओं में से ज्यादातर के पास 7 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम है। अब 3जी की नीलामी में 5 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम मिलने के बाद उनका संचालन खर्च 30 से 40 फीसदी तक घट सकता है।

प्रति उपयोगकर्ता औसत राजस्व (एपीआरयू) तेजी से कम हो रहा है और कंपनियों को राजस्व के नए क्षेत्रों की दरकार है। इनमें से ज्यादातर कंपनियों को उच्च गति वाले इंटरनेट एक्सेस व अन्य चीजों का इंतजाम करना होगा, जिसमें बड़े बैंडविड्थ की जरूरत होती है।

एक ओर जहां वॉयस टेलीफोनी के नए उपयोगकर्ता से मिलने वाला वृध्दिशील एपीआरयू 100 रुपये प्रति माह तक नीचे चला गया है, वहीं टाटा टेलीसर्विसेज व आर कॉम द्वारा मुहैया कराए जाने वाले 3जी जैसे वायरलेस इंटरनेट से उन्हें 650 रुपये प्रति माह से ज्यादा का राजस्व मिल रहा है।

इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले लोगों से कम है। ऐसे में सवाल है कि ज्यादा रकम चुकाने वाले ऐसे ग्राहकों की संख्या (अगले 5 साल में अनुमानित 9-10 करोड़) बोली में लगे कुल 45-50,000 करोड़ रुपये के हिसाब से पर्याप्त है।

कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज रिसर्च ने करीब एक महीने पहले 51,300 करोड़ रुपये की बोली का अनुमान जताया था (3जी के लिए 10.3 और बीडब्ल्यूए के लिए 1.1 अरब डॉलर) और अब उसका आंकड़ा सही नजर आ रहा है।

एक ओर जहां कंपनियां 3जी की नई व बेहतर सेवाओं के जरिए 6.1 अरब डॉलर हासिल करेंगी, वहीं वे 3जी स्पेक्ट्रम नहीं मिलने पर 6.3 अरब गंवाएंगी क्योंकि ग्राहक दूसरी कंपनियों का दामन थाम लेंगे। इस तर्क के आधार पर अगर कंपनियां बोली लगाती हैं और मान लेते हैं कि 3जी के लिए 9 अरब डॉलर, तो यह रकम 6.1 अरब डॉलर से ज्यादा है जो कि वे 3जी सेवाओं के जरिए कमाएंगी।

साल 2008 में 2जी की नीलामी के जरिए दूरसंचार मंत्री ने सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया था। मान लेते हैं कि 3जी की नीलामी 40,000 करोड़ रुपये पर आकर टिकती है और उसमें चार कंपनियों को पूरे देश में 5 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम का लाइसेंस मिलता है तो फिर इसका हिसाब 2000 करोड़ रुपये प्रति मेगाहट्र्ज बैठता है, वहीं राजा ने 375 करोड़ रुपये प्रति मेगाहट्र्ज के हिसाब से लाइसेंस दिया था।

एक ओर जहां 2जी के मुकाबले 3जी से कंपनियां ज्यादा ग्राहकों को सेवा दे सकती हैं, वहीं दूसरी ओर महंगे हैंडसेट की वजह से 3जी सेवा की मांग में अवरोध दिख रहा है। अगर 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी सही कीमत पर हुई होती और वह 3जी के मुकाबले सिर्फ आधी होती यानी 1000 करोड़ रुपये प्रति मेगाहर्ट्ज, तो फिर मामला कुछ और होता।

राजा ने अपनी पसंदीदा फर्मों को सरकार के 15,000 करोड़ रुपये उपहार के तौर पर दे दिए-भारत के इतिहास में सबसे बड़ा उपहार। अहम सवाल यह है कि राजा अभी भी सरकार में मंत्री के पद पर क्यों बने हुए हैं?

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